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पृ॒च्छामि॑ त्वा चि॒तये॑ देवसख॒ यदि॒ त्वमत्र॒ मन॑सा ज॒गन्थ॑। येषु॒ विष्णु॑स्त्रि॒षु प॒देष्वेष्ट॒स्तेषु॒ विश्वं॒ भुव॑न॒मावि॑वेशाँ३ऽ ॥४९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पृ॒च्छामि॑। त्वा॒। चि॒तये॑। दे॒व॒स॒खेति॑ देवऽसख। यदि॑। त्वम्। अत्र॑। मन॑सा। ज॒गन्थ॑। येषु॑। विष्णुः॑। त्रि॒षु। प॒देषु॑। आइ॑ष्ट॒ इत्याऽइ॑ष्टः। तेषु॑। विश्व॑म्। भुव॑नम्। आ। वि॒वे॒श॒ ॥४९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:49


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर प्रश्नों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवसख) विद्वानों के मित्र ! (यदि) जो (त्वम्) तू (अत्र) यहाँ (मनसा) अन्तःकरण से (जगन्थ) प्राप्त हो तो (त्वा) तुझे (चितये) चेतन के लिये (पृच्छामि) पूछता हूँ जो (विष्णुः) व्यापक ईश्वर (येषु) जिन (त्रिषु) तीन प्रकार के (पदेषु) प्राप्त होने योग्य जन्म, नाम और स्थान में (एष्टः) अच्छे प्रकार इष्ट है, (तेषु) उनमें व्याप्त हुआ (विश्वम्) सम्पूर्ण (भुवनम्) पृथिवी आदि लोकों को (आ, विवेश) भलीभाँति प्रवेश कर रहा है, उस परमात्मा को भी तुझ से पूछता हूँ ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वान् ! जो चेतनस्वरूप, सर्वव्यापी, पूजा, उपासना, प्रशंसा, स्तुति करने योग्य परमेश्वर है; उसका मेरे लिये उपदेश करो ॥४९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः प्रश्नानाह ॥

अन्वय:

(पृच्छामि) (त्वा) त्वाम् (चितये) चेतनाय (देवसख) देवानां विदुषां सुहृद् (यदि) (त्वम्) (अत्र) (मनसा) अन्तःकरणेन (जगन्थ) (येषु) (विष्णुः) व्यापकेश्वरः (त्रिषु) त्रिविधेषु (पदेषु) नामस्थानजन्माख्येषु (एष्टः) (तेषु) (विश्वम्) (भुवनम्) (आ) (विवेश) आविष्टो व्याप्तोऽस्ति ॥४९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे देवसख ! यदि त्वमत्र मनसा जगन्थ तर्हि त्वा चितये पृच्छामि, यो विष्णुर्येषु त्रिषु पदेष्वेष्टोऽस्ति तेषु व्याप्तः सन् विश्वं भुवनमाविवेश तं च पृच्छामि ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! यश्चेतनः सर्वव्यापी पूजितुं योग्यः परमेश्वरोऽस्ति, तं मह्यमुपदिश ॥४९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! जो चेतनस्वरूप, सर्वव्यापी, पूजा, उपासना प्रशंसा, स्तुती करण्यायोग्य असा परमेश्वरच आहे. त्यांच्यासंबंधी मला उपदेश करा.